महिलाओं के शरीर को समय समय पर कई प्रकार के परिवर्तनों से होकर गुज़रना पड़ता है। शरीर में आने वाले हार्मोनल बदलाव का असर स्किन, बालों, बॉडी वेट और पीरियड साइकल पर दिखने लगता है। आमतौर पर 35 की उम्र के बाद महिलाओं की पीरियड साइकल में चेंजिज़ नज़र आने लगते हैं। जहां कुछ महिलाएं इसे इग्नोर करने लगती है, तो कुछ के लिए ये चिंता का कारण बन जाता है। इन शारीरिक बदलावों को पेरीमेनोपॉज कहा जाता है। इस फेज़ को लेकर महिलाओं के मन में कई सवाल उठने लगते हैं। जानते हैं रूजुता दिवेकर से कि मेनोपॉज क्या है और इससे कैसे डील किया जा सकता है।
सबसे पहले जानते हैं कि पेरीमेनोपॉज किसे कहा जाता है
इस बारे में सेलिब्रिटी न्यूट्रिशनिस्ट रुजुता दिवेकर बताती है कि मेनोपॉज (menopause) से 5 से 10 साल पहले के पीरियड को पेरीमेनोपॉज कहा जाता है। ये वो वक्त होता है, जिसमें ओवरीज़़ की फक्शनिंग बिना किसी बीमारी या अन्य समस्या के खुद ब खुद धीमी होने लगती है। अक्सर ऐसा एंटीसिपेशन यानि बदलाव के कारण नेचुरली होने लगता है।
ओवरीज़ में आने वाले बदलाव का असर ब्लीडिंग और पीरियड डेज़ से लेकर ब्रेन की कार्य प्रणाली पर नज़र आने लगता है। जहां पहले ब्लीडिंग 4 से 5 दिन हुआ करती थी, अब उसकी अवधि या तो 10 दिन हो जाती है या फिर पीरियड 1 से 2 दिन में ही समाप्त हो जाते हैं। इस दौरान शरीर में कई परिवर्तन नज़र आने लगते हैं।
जानते हैं पेरीमेनोपॉज के दौरान शरीर में आने वाले बदलाव -
1. हड्डियों में दर्द रहना
दिनभर काम करने के दौरान, पीरियड साइकल नज़दीक आने पर या फिर ओव्यूलेशन के समय हड्डियों में दर्द का सामना करना पड़ता है। दरअसल, पेरीमेनोपॉज़ फेस में शरीर में एस्ट्रोजन की मात्रा कम होने लगती है, जिससे बोन्स का वज़न घटने लगता है। हड्डियों में आने वालीं कमज़ोरी के चलते दर्द और ऐंंठन की समस्या बनी रहती है। खासतौर से महिलाओं को पीठ, गर्दन और घुटनों का दर्द आरंभ हो जाता है। हांलाकि टेस्ट के दौरान किसी तरह की कोई कमी नहीं पाई जाती है। मगर हार्मोन असंतुलन के कारण घुटनों का दर्द रहता है।
2. हृदय संबधी समस्याओं का खतरा बढ़ना
ऐसी स्थिति में शरीर में हृदय रोगों का खतरा बढने लगता है। कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स और ब्लड प्रेशर में बदलाव देखने को मिलते है। वे महिलाएं, जिन्हें लो बीपी की समस्या रहती थी, उन्हें हाईबीपी की समस्या बनी रहती है। शरीर को एक्टिव न रख पाना और खान पान में बरती गई अनियमितताएं हृदय संबधी समस्याओं का खतरा बढ़ाने लगती हैं।
3. ब्रेन फॉग का सामना करना
रूजुता दिवेकर बताती हैं कि जिस तरह कोहरा बढ़ने के कारण कोई चीज़ साफ साफ नज़र नहीं आती। ठीक उसी तरह से अक्सर महिलाएं ऐसे समय में चीजें जानते हुए भी याद नहीं रख पाती है। भूलने की समस्या बढ़ जाती है, जिससे व्यवहार में झुंझलाहट बढ़ने लगती है। याददाश्त में कमी आने से पेशेंस यानि धैर्य की कमी भी महसूस होने लगती है। इस दौरान अधिकतर महिलाएं ब्रेन फॉग की समस्या और बॉडी की शेप में परिवर्तन को लेकर गुस्से में रहने लगती है।
4. हार्मोन असंतुलन
पेरीमेनोपॉज के दौरान खान पान का ख्याल न रखना और नींद की कमी के चलते हार्मोन असंतुलन का सामना करना पड़ता है। इससे शरीर में प्रोजेस्ट्रॉन और एस्ट्रोजन का स्तर गड़बड़ा जाता है। इससे एडल्ट एक्ने का खतरा बढ़ने लगता है। चेहरे पर दाग धब्बों की समस्या बनी रहती है। इसके अलावा ब्लोटिंग, एसिडिटी और अपच की समस्या से भी दो चार होना पड़ता है।
पेरीमेनोपॉज़ के कारण शरीर में आने वाले अन्य बदलाव
फ्रीकवेंट यूरिनेशन का सामना करना पड़ता है। हर थोड़ी देर में यूरिन पास करने की आवश्यकता महसूस होने लगती है। खासतौर से रात में बार बार यूरिन सेंसशन होती है। ऐसा महसूस होता है कि ब्लैडर अब तक खाली नहीं हो पाया है।
शरीर के साइज़ में बदलाव महसूस होता है। शरीर की चौड़ाई बढ़ने लगती है। सेहत का ख्याल न रख पाने के कारण बॉडी वेट और शेप दोनों में परिवर्तन तेज़ी से बढ़ने लगता है।
हार्मोन में परिर्वतनों के आने से ग्रे हेयर की समस्या बढ़ जाती है और बालों की शाइन कम होने लगती है। इसके अलावा बालों के वॉल्यूम पर भी उसका असर नज़र आता है।
एक्ने के अलावा पेरामेनोपॉज के दौरान त्वचा पर खुजली और डार्क चेज की समस्या बढ़ने लगती है। त्वचा का ख्याल न रख पाने के कारण त्वचा का ग्लो कम होने लगता है और एक्ने के बाद दाग धब्बों का खतरा बना रहता है।
जानते हैं किस तरह पेरीमेनोपॉज में रखें अपना ख्याल
1. एक्सरसाइज करें
इस बात का ख्याल रखना आवश्यक है कि पेरीमेनोपॉज के समय में बॉडी वेट में बदलाव आना स्वाभाविक है। अधिकतर महिलाएं बाकी कामों में उलझने के कारण वर्कआउट नहीं कर पाती हैं, जिससे शरीर में बदलाव तेज़ी से आने लगते है। ऐसे में सप्ताह में 3 दिन एक्सरसाइज़ के लिए निकालें। इसमें से एक दिन योगा, एक दिन स्ट्रेंथ टेनिंग और 1 दिन कार्डियों के लिए निकालें। सप्ताह में 3 दिन एक्सरसाइज़ करें। इससे ब्लैडर लीकेज का खतरा कम होने लगता है।
2. ब्रेन एक्टीविटी है मददगार
कुछ नया सीखने का प्रयास करना चाहिए। इससे ब्रेनफॉग को दूर करने में मदद मितली है। इससे दिमाग नई जगह कनेक्टिड होने लगेगा, जिससे मेंटल हेल्थ बूस्ट होती है। कोई भी अपना पसंदीदा एक्टीविटी अवश्य करें। इससे बार बार भूलने की समस्या से बचा जा सकता है और फोकस बढ़ने लगता है।
3. हेल्दी खाना खाएं
अपने हार्मोन को बैलेंस करने के लिए नट्स को आहार में शामिल करें। मूंगफली का सेवन करने से शरीर को पोषण की प्राप्ति होती है, जिससे ब्रेस्ट टेंडरनेस की समस्या हल होने लगती है। नट्स में विटामिन बी 6 की मात्रा होती है, जिससे दर्द को कम किया जा सकता है। शरीर को हेल्दी रखने के लिए एक मुट्ठी नट्स खाएं। इससे त्वचा का ग्लो भी बनी रहता है।
पीरियड से 10 दिन पहले काले मुनक्के और केसर को भिगोकर खाएं। इससे पीएमएस से मुक्ति मिल जाती है और शरीर एक्टिव रहता है।
इसके अलावा रूट वेजिटेबल्स खाए। जैसे अरबी, शकरकंदी, कच्चा केला खाएं। सप्ताह में एक दिन रूट्स वेजिटेबल अवश्य खाएं।
दोपहर के खाने के समय 1 गिलास छाछ अवश्य पीएं। इससे मन को शांत रखने और मूड को बूस्ट करने में मदद मिलती है। इसमें मौजूद मिनरल्स और प्रोबायोटिक्स की मा ख शरीर को पोषण देती है।
4. स्किन का रखें ख्याल
उम्र के साथ बढ़ने वाली झुर्रियों और स्किन एक्ने से राहत पाने के लिए स्किन केयर रूटीन को फॉलो करें। त्वचा को एक्सफोलिएट करने से डेड स्किन सेल्स की समस्या हल होने लगती है और त्वचा का रूखापन भी कम हो जाता है। नियमित रूप से स्किन को मॉइश्चराइज़ रखना आवश्यक है।
महिलाओं के शरीर को समय समय पर कई प्रकार के परिवर्तनों से होकर गुज़रना पड़ता है। शरीर में आने वाले हार्मोनल बदलाव का असर स्किन, बालों, बॉडी वेट और पीरियड साइकल पर दिखने लगता है। आमतौर पर 35 की उम्र के बाद महिलाओं की पीरियड साइकल में चेंजिज़ नज़र आने लगते हैं। जहां कुछ महिलाएं इसे इग्नोर करने लगती है, तो कुछ के लिए ये चिंता का कारण बन जाता है। इन शारीरिक बदलावों को पेरीमेनोपॉज कहा जाता है। इस फेज़ को लेकर महिलाओं के मन में कई सवाल उठने लगते हैं। जानते हैं रूजुता दिवेकर से कि मेनोपॉज क्या है और इससे कैसे डील किया जा सकता है।
सबसे पहले जानते हैं कि पेरीमेनोपॉज किसे कहा जाता है
इस बारे में सेलिब्रिटी न्यूट्रिशनिस्ट रुजुता दिवेकर बताती है कि मेनोपॉज (menopause) से 5 से 10 साल पहले के पीरियड को पेरीमेनोपॉज कहा जाता है। ये वो वक्त होता है, जिसमें ओवरीज़़ की फक्शनिंग बिना किसी बीमारी या अन्य समस्या के खुद ब खुद धीमी होने लगती है। अक्सर ऐसा एंटीसिपेशन यानि बदलाव के कारण नेचुरली होने लगता है।
ओवरीज़ में आने वाले बदलाव का असर ब्लीडिंग और पीरियड डेज़ से लेकर ब्रेन की कार्य प्रणाली पर नज़र आने लगता है। जहां पहले ब्लीडिंग 4 से 5 दिन हुआ करती थी, अब उसकी अवधि या तो 10 दिन हो जाती है या फिर पीरियड 1 से 2 दिन में ही समाप्त हो जाते हैं। इस दौरान शरीर में कई परिवर्तन नज़र आने लगते हैं।
जानते हैं पेरीमेनोपॉज के दौरान शरीर में आने वाले बदलाव -
1. हड्डियों में दर्द रहना
दिनभर काम करने के दौरान, पीरियड साइकल नज़दीक आने पर या फिर ओव्यूलेशन के समय हड्डियों में दर्द का सामना करना पड़ता है। दरअसल, पेरीमेनोपॉज़ फेस में शरीर में एस्ट्रोजन की मात्रा कम होने लगती है, जिससे बोन्स का वज़न घटने लगता है। हड्डियों में आने वालीं कमज़ोरी के चलते दर्द और ऐंंठन की समस्या बनी रहती है। खासतौर से महिलाओं को पीठ, गर्दन और घुटनों का दर्द आरंभ हो जाता है। हांलाकि टेस्ट के दौरान किसी तरह की कोई कमी नहीं पाई जाती है। मगर हार्मोन असंतुलन के कारण घुटनों का दर्द रहता है।
2. हृदय संबधी समस्याओं का खतरा बढ़ना
ऐसी स्थिति में शरीर में हृदय रोगों का खतरा बढने लगता है। कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स और ब्लड प्रेशर में बदलाव देखने को मिलते है। वे महिलाएं, जिन्हें लो बीपी की समस्या रहती थी, उन्हें हाईबीपी की समस्या बनी रहती है। शरीर को एक्टिव न रख पाना और खान पान में बरती गई अनियमितताएं हृदय संबधी समस्याओं का खतरा बढ़ाने लगती हैं।
3. ब्रेन फॉग का सामना करना
रूजुता दिवेकर बताती हैं कि जिस तरह कोहरा बढ़ने के कारण कोई चीज़ साफ साफ नज़र नहीं आती। ठीक उसी तरह से अक्सर महिलाएं ऐसे समय में चीजें जानते हुए भी याद नहीं रख पाती है। भूलने की समस्या बढ़ जाती है, जिससे व्यवहार में झुंझलाहट बढ़ने लगती है। याददाश्त में कमी आने से पेशेंस यानि धैर्य की कमी भी महसूस होने लगती है। इस दौरान अधिकतर महिलाएं ब्रेन फॉग की समस्या और बॉडी की शेप में परिवर्तन को लेकर गुस्से में रहने लगती है।
4. हार्मोन असंतुलन
पेरीमेनोपॉज के दौरान खान पान का ख्याल न रखना और नींद की कमी के चलते हार्मोन असंतुलन का सामना करना पड़ता है। इससे शरीर में प्रोजेस्ट्रॉन और एस्ट्रोजन का स्तर गड़बड़ा जाता है। इससे एडल्ट एक्ने का खतरा बढ़ने लगता है। चेहरे पर दाग धब्बों की समस्या बनी रहती है। इसके अलावा ब्लोटिंग, एसिडिटी और अपच की समस्या से भी दो चार होना पड़ता है।
पेरीमेनोपॉज़ के कारण शरीर में आने वाले अन्य बदलाव
फ्रीकवेंट यूरिनेशन का सामना करना पड़ता है। हर थोड़ी देर में यूरिन पास करने की आवश्यकता महसूस होने लगती है। खासतौर से रात में बार बार यूरिन सेंसशन होती है। ऐसा महसूस होता है कि ब्लैडर अब तक खाली नहीं हो पाया है।
शरीर के साइज़ में बदलाव महसूस होता है। शरीर की चौड़ाई बढ़ने लगती है। सेहत का ख्याल न रख पाने के कारण बॉडी वेट और शेप दोनों में परिवर्तन तेज़ी से बढ़ने लगता है।
हार्मोन में परिर्वतनों के आने से ग्रे हेयर की समस्या बढ़ जाती है और बालों की शाइन कम होने लगती है। इसके अलावा बालों के वॉल्यूम पर भी उसका असर नज़र आता है।
एक्ने के अलावा पेरामेनोपॉज के दौरान त्वचा पर खुजली और डार्क चेज की समस्या बढ़ने लगती है। त्वचा का ख्याल न रख पाने के कारण त्वचा का ग्लो कम होने लगता है और एक्ने के बाद दाग धब्बों का खतरा बना रहता है।
जानते हैं किस तरह पेरीमेनोपॉज में रखें अपना ख्याल
1. एक्सरसाइज करें
इस बात का ख्याल रखना आवश्यक है कि पेरीमेनोपॉज के समय में बॉडी वेट में बदलाव आना स्वाभाविक है। अधिकतर महिलाएं बाकी कामों में उलझने के कारण वर्कआउट नहीं कर पाती हैं, जिससे शरीर में बदलाव तेज़ी से आने लगते है। ऐसे में सप्ताह में 3 दिन एक्सरसाइज़ के लिए निकालें। इसमें से एक दिन योगा, एक दिन स्ट्रेंथ टेनिंग और 1 दिन कार्डियों के लिए निकालें। सप्ताह में 3 दिन एक्सरसाइज़ करें। इससे ब्लैडर लीकेज का खतरा कम होने लगता है।
2. ब्रेन एक्टीविटी है मददगार
कुछ नया सीखने का प्रयास करना चाहिए। इससे ब्रेनफॉग को दूर करने में मदद मितली है। इससे दिमाग नई जगह कनेक्टिड होने लगेगा, जिससे मेंटल हेल्थ बूस्ट होती है। कोई भी अपना पसंदीदा एक्टीविटी अवश्य करें। इससे बार बार भूलने की समस्या से बचा जा सकता है और फोकस बढ़ने लगता है।
3. हेल्दी खाना खाएं
अपने हार्मोन को बैलेंस करने के लिए नट्स को आहार में शामिल करें। मूंगफली का सेवन करने से शरीर को पोषण की प्राप्ति होती है, जिससे ब्रेस्ट टेंडरनेस की समस्या हल होने लगती है। नट्स में विटामिन बी 6 की मात्रा होती है, जिससे दर्द को कम किया जा सकता है। शरीर को हेल्दी रखने के लिए एक मुट्ठी नट्स खाएं। इससे त्वचा का ग्लो भी बनी रहता है।
पीरियड से 10 दिन पहले काले मुनक्के और केसर को भिगोकर खाएं। इससे पीएमएस से मुक्ति मिल जाती है और शरीर एक्टिव रहता है।
इसके अलावा रूट वेजिटेबल्स खाए। जैसे अरबी, शकरकंदी, कच्चा केला खाएं। सप्ताह में एक दिन रूट्स वेजिटेबल अवश्य खाएं।
दोपहर के खाने के समय 1 गिलास छाछ अवश्य पीएं। इससे मन को शांत रखने और मूड को बूस्ट करने में मदद मिलती है। इसमें मौजूद मिनरल्स और प्रोबायोटिक्स की मा ख शरीर को पोषण देती है।
4. स्किन का रखें ख्याल
उम्र के साथ बढ़ने वाली झुर्रियों और स्किन एक्ने से राहत पाने के लिए स्किन केयर रूटीन को फॉलो करें। त्वचा को एक्सफोलिएट करने से डेड स्किन सेल्स की समस्या हल होने लगती है और त्वचा का रूखापन भी कम हो जाता है। नियमित रूप से स्किन को मॉइश्चराइज़ रखना आवश्यक है।