भाद्राजून’ का संबंध महाभारत काल से माना जाता है. इसी कारण इस स्थान को पांच हजार साल पुराना माना जाता है. ‘भाद्राजून’ शब्द दो शब्दों- सुभद्रा व अर्जुन को मिलाकर बना है. सुभद्रा भगवान श्रीकृष्ण की बहन थी और अर्जुन पाण्डु पुत्र थे. सुभद्रा-अर्जुन’ का प्रसंग भी महाकाल में ही हुआ था. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पाण्डु के पुत्र महान योद्धा धनुर्धर अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा से प्रेम हो गया था. यहां पर ही उन दोनों ने एक मंदिर के पुजारी की मदद से विवाह किया.
कहां जाता है कि सुभद्रा-अर्जुन का विवाह संपन्न करने वाले पुजारी को अर्जुन ने एक शंख और सुभद्रा ने अपने नाक की बाली भेंट स्वरूप प्रदान की थी. इसलिए जिस स्थान पर उनका विवाह संपन्न करवाया था, उस स्थान का नाम शंखवाली पड़ गया जो आज भी विद्यमान है. यहां पहाड़ी के पीछे सुभद्रा देवी का प्राचीन मंदिर भी हैं जिसे ‘धुमदामाता मंदिर’ के नाम से जाना जाता है. ‘भाद्राजून’ राजस्थान के ऐतिहासिक और प्राचीन स्थलों में से एक है. यह राजस्थान के जालोर-जोधपुर मार्ग पर जालोर जिला मुख्यालय से लगभग 54 किलोमीटर दूर स्थित है. यह स्थल जोधपुर से तकरीबन 97 किमी, उदयपुर से 200 किमी, जयपुर से 356 किमी और दिल्ली से 618 किमी है. यह एक छोटा सा गांव है, जो यहां का इतिहास, दुर्ग व महल के कारण राज्य में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता हैं.
भाद्राजून पश्चिमी राजस्थान के जालोर जिले में यह प्राचीन स्थल लूणी नदी के बेसिन पर स्थित है. भाद्राजून पिछली कई सदियों में हुए अनेक ऐतिहासिक घटनाओं और युद्धों का गवाह रहा है. यहां पर मारवाड़ राजवंश और मुगल साम्राज्य के शासकों के बीच अनेक युद्ध और आक्रमण हुए. यहां के शासकों ने मारवाड़ के जोधपुर राजघराने के अधीन रहकर शासन चलाया और क्षेत्र की समृद्धि के लिए व प्रजा की रक्षा के लिए काम किया. एक छोटे से पहाड़ पर स्थित मजबूत व सुरक्षित भाद्राजून के किले का निर्माण सोलहवीं शताब्दी में किया गया. इसके चारों ओर पहाड़ियां व घाटियां होने के कारण इस दुर्ग को अत्यधिक प्राकृतिक सुरक्षा मिली हुई थी. इसी कारण यह दुर्ग सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है. यह दुर्ग घोड़े के खुर के आकार की घाटी से जुड़ा हुआ है और इसमें केवल एक ओर पूर्व दिशा से ही प्रवेश किया जा सकता है. दुर्ग पर अनेक प्राचीन अवशेष आज भी दिखाई पड़ते हैं. ठाकुर बख्तावर सिंह ने यहां विक्रम संवत 1863 में ‘बखत सागर' नामक एक जलाशय का निर्माण करवाया था.
भाद्राजून’ का संबंध महाभारत काल से माना जाता है. इसी कारण इस स्थान को पांच हजार साल पुराना माना जाता है. ‘भाद्राजून’ शब्द दो शब्दों- सुभद्रा व अर्जुन को मिलाकर बना है. सुभद्रा भगवान श्रीकृष्ण की बहन थी और अर्जुन पाण्डु पुत्र थे. सुभद्रा-अर्जुन’ का प्रसंग भी महाकाल में ही हुआ था. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पाण्डु के पुत्र महान योद्धा धनुर्धर अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा से प्रेम हो गया था. यहां पर ही उन दोनों ने एक मंदिर के पुजारी की मदद से विवाह किया.
कहां जाता है कि सुभद्रा-अर्जुन का विवाह संपन्न करने वाले पुजारी को अर्जुन ने एक शंख और सुभद्रा ने अपने नाक की बाली भेंट स्वरूप प्रदान की थी. इसलिए जिस स्थान पर उनका विवाह संपन्न करवाया था, उस स्थान का नाम शंखवाली पड़ गया जो आज भी विद्यमान है. यहां पहाड़ी के पीछे सुभद्रा देवी का प्राचीन मंदिर भी हैं जिसे ‘धुमदामाता मंदिर’ के नाम से जाना जाता है. ‘भाद्राजून’ राजस्थान के ऐतिहासिक और प्राचीन स्थलों में से एक है. यह राजस्थान के जालोर-जोधपुर मार्ग पर जालोर जिला मुख्यालय से लगभग 54 किलोमीटर दूर स्थित है. यह स्थल जोधपुर से तकरीबन 97 किमी, उदयपुर से 200 किमी, जयपुर से 356 किमी और दिल्ली से 618 किमी है. यह एक छोटा सा गांव है, जो यहां का इतिहास, दुर्ग व महल के कारण राज्य में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता हैं.
भाद्राजून पश्चिमी राजस्थान के जालोर जिले में यह प्राचीन स्थल लूणी नदी के बेसिन पर स्थित है. भाद्राजून पिछली कई सदियों में हुए अनेक ऐतिहासिक घटनाओं और युद्धों का गवाह रहा है. यहां पर मारवाड़ राजवंश और मुगल साम्राज्य के शासकों के बीच अनेक युद्ध और आक्रमण हुए. यहां के शासकों ने मारवाड़ के जोधपुर राजघराने के अधीन रहकर शासन चलाया और क्षेत्र की समृद्धि के लिए व प्रजा की रक्षा के लिए काम किया. एक छोटे से पहाड़ पर स्थित मजबूत व सुरक्षित भाद्राजून के किले का निर्माण सोलहवीं शताब्दी में किया गया. इसके चारों ओर पहाड़ियां व घाटियां होने के कारण इस दुर्ग को अत्यधिक प्राकृतिक सुरक्षा मिली हुई थी. इसी कारण यह दुर्ग सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है. यह दुर्ग घोड़े के खुर के आकार की घाटी से जुड़ा हुआ है और इसमें केवल एक ओर पूर्व दिशा से ही प्रवेश किया जा सकता है. दुर्ग पर अनेक प्राचीन अवशेष आज भी दिखाई पड़ते हैं. ठाकुर बख्तावर सिंह ने यहां विक्रम संवत 1863 में ‘बखत सागर' नामक एक जलाशय का निर्माण करवाया था.